भारत में जल्द ही स्कॉच व्हिस्की और दूसरे प्रकार की शराबों की कमी हो सकती है. भारतीय खाद्य सुरक्षा तथा मानक प्राधिकरण ने भारत में इन लोकप्रिय शराबों के आयात पर 3 माह पूर्व प्रतिबन्ध लगा दिया था. यह प्रतिबन्ध निर्माता कम्पनियों द्वारा लेबलिंग आवश्यकताओं के गैर अनुपालन के कारण लगाया गया था. लेबलिंग को खाद्य सुरक्षा तथा मानक नियामक 2011 (पैकेजिंग और लेबलिंग) के अंतर्गत परिभाषित किया गया है.
3 महीने पहले तक निर्माताओं को प्राधिकरण द्वारा अंतरिम राहत प्रदान की गयी थी. हालांकि प्राधिकरण के इस अचानक कदम से आयातित शराब के 60 शिपमेंट कस्टम विभाग में फंस गए हैं जिसके कारण भारत के बाज़ारों में आपूर्ति में रुकावट आ सकती है.
परिणाम स्वरुप वितरक और आयातक काफी वित्तीय नुकसानों का सामना कर रहे हैं, जबकि उपभोक्ताओं के लिए उनके पसंदीदा ब्रांड की शराब बाज़ार में पाना कठिन होता जा रहा है.
कुछ शराब आयातक यह कह रहे हैं कि अभी उनके पास मांग पूरी करने के लिए पर्याप्त आपूर्ति है लेकिन उन्हें डर है कि गतिरोध को अगर जल्दी ही नहीं तोडा गया तो उन्हें निर्माताओं से लेबलिंग की आवश्यकताओं का पालन करने का अनुरोध करना होगा.
भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण के अनुसार पैकिंग में उत्पाद के हर घटक की पूरी सूची होनी चाहिए, केवल उन उत्पादों के लिए यह आवश्यक नहीं है जिनमें एक ही घटक होता है. इन घटकों में जोड़ा गया पानी भी सम्मिलित होता है केवल उन उत्पादों को छोड़कर जिनमें पानी किसी ख़ास घटक का हिस्सा होता है
हालांकि इसने एक गतिरोध को जन्म दिया है क्योंकि यूरोप के निर्माताओं के अनुसार लगभग सभी प्रकार की शराबों में एक ही प्रकार का घटक होता है तो उन्हें बोतल पर संघटकों की सूची बताने की जरूरत नहीं है. उदाहरण के लिए स्कॉच व्हिस्की को पानी के साथ मिलाकर खमीर उठे गेंहू के साथ बनाया जाता है.
कुछ आयातक यह भी दावा कर रहे हैं कि उद्योग में संकट के लिए केवल घटकों की सूची ही एकमात्र समस्या नहीं है. वे कहते हैं कि प्राधिकरण निर्माताओं से बोतल निर्माता और डिस्टिलर के नाम और पते को माँगा जा रहा है, जबकि उद्योग में यह आम प्रक्रिया है कि शराब का निर्माण, डिस्टल और बोतल का कार्य एक ही कंपनी द्वारा किया जाता है, जब तक कि उसे अलग से बताया न जाए
उम्मीद है कि समस्याओं का हल जल्द होगा
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